दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ थोड़ा जल स्वयं पी लें और मिश्री प्रसाद के रूप में बांट दें। कहे अयोध्या आस तुम्हारी । https://shiv-chalisa-lyrics-bhakt98475.wikiannouncement.com/7396650/examine_this_report_on_shiv_chalisa_lyrics_in_english